भगवान जगन्नाथ कौन हैं और उनका भगवान कृष्ण से क्या संबंध है?

 

भगवान जगन्नाथ विष्णु (कृष्ण) को ही नाम दिया गया है क्योंकि एक भील शिकारी ने एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए लेट गए और उनके पैर में लगे पदम को हिरण की आंख समझकर उसके पैर में विषाक्त तीर मार दिया। श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई, लेकिन मरने से कुछ समय पहले, श्रीकृष्ण ने शिकारी से कहा, मैं कुछ समय का मेहमान हूँ, मेरा एक काम करो, मेरे रिश्तेदार पांडवों को बताओ कि यादव आपस में लड़ रहे हैं और शीघ्र जाओ।जब अर्जुन और अन्य पांचो पांडव पहुंचे, श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मेरे शरीर को जलाकर इसकी राख को एक संदूक या कास्ट की पेटी में डालकर पूरी तरह से बंद करके समुद्र में बहा देना। ऐसा किया गया था। उपरांत और पेटी कुछ समय बहकर उड़ीसा में पुरी के पास समुद्र के किनारे पहुंचे। उड़ीसा का राजा इंद्र दमन था, जो बहुत श्रद्धालु श्रीकृष्ण था। श्रीकृष्ण ने स्वपन में राजा को देखा और कहा कि मेरे शरीर की राख एक संदूक में डालकर द्वारका में बहाई गई थी, जो अब पूरी (उड़ीसा) में आ गई है। उसे बाहर निकालकर समुद्र किनारे जगन्नाथ नाम का मंदिर बनाओ। श्रीकृष्ण को राजा इंद्र दमन जी  ने ही मंदिर का नाम जगन्नाथ रखा था।

 

 

 

हिंदू धर्म में बदरीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और पुरी चार धाम हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने चारों धाम पर पहली बार बदरीनाथ में स्नान किया. फिर वह गुजरात के द्वारिका में कपड़े बदलने गए। द्वारिका के बाद, उन्होंने पुरी, ओडिशा में खाना खाया और अंत में रामेश्वरम, तमिलनाडु में विश्राम किया। पुरी में श्री जगन्नाथ भगवान का मंदिर है।

 

Puri के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां हैं। ये देश लकड़ी की मूर्तियों से भरा है। जगन्नाथ मंदिर में ऐसी कई विशेषताएं और सदियों से रहस्य बनी हुई कई कहानियां हैं।

 

मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया और अपना अंतिम संस्कार किया, उनकी पूरी देह पंचतत्व में विलीन हो गई। माना जाता है कि भगवान कृष्ण का दिल एक जीवित व्यक्ति की तरह ही धड़कता था। कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्ति में आज भी उसका दिल सुरक्षित है।

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की कहानी क्या है?

 

 नृप इन्द्रदमन का राज्य उड़ीसा था। वे श्रीकृष्ण के एकमात्र भक्त थे। राजा ने एक सपने में श्रीकृष्ण से साक्षात्कार किया और मंदिर बनाकर गीता उपदेश देने की इच्छा व्यक्त की। मंदिर राजा इन्द्रदमन की आज्ञा के अनुसार बनाया गया था, लेकिन समुद्र ने इसे तोड़ने की प्रक्रिया को रोक नहीं पाया। देव सदन पांच बार टूट गया। राजा ने निराश होकर मंदिर को फिर से बनाने का फैसला किया। कोष खाली हो गया था। कबीर ने ज्योति निरंजन को एक मंदिर बनाने का वचन दिया था। कथा के अनुसार कवीदेव ने राजा इन्द्रदमन को मंदिर बनाने का आग्रह किया, लेकिन राजा ने कृष्ण को सर्वोपरि कहते हुए मना किया कि अगर कृष्ण ही अम्बुज को नहीं रोक पाए तो मंदिर नहीं बनेगा।

 

 इसलिए कौन रोक सकता है?कविदेव ने यह सुनकर अपना घर बताया और वहाँ से चले गए। स्वप्न में श्री कृष्ण ने राजा से कहा कि वे अनन्य भक्ति के स्वामी हैं और सिर्फ सन्त नहीं हैं। राजा इन्द्रदमन ने फिर से कवि देव से प्रार्थना की। कविदेव ने आकर एक चबूतरे पर बैठकर पूजा की। मंदिर बनते ही समुद्र फिर आया, लेकिन कबीर परमेश्वर ने उसे हाथ उठाकर रोका।

 

भगवान जगन्नाथ के प्रसाद के रूप में क्या चढ़ाया जाता है?

 

कथा—

 

माना जाता है कि महाप्रभु वल्लभाचार्य एकादशी के दिन जगन्नाथ मंदिर गए थे। वहाँ भगवान ने महाप्रभु वल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा ली। उस दिन श्री वल्लभाचार्य ने व्रत किया था। किसी ने उन्हें भोजन दिया। वल्लभाचार्य ने उस उपहार को स्वीकार कर लिया। तब वे दिन-रात पूजा करते रहे। अगले दिन द्वादशी को पूजा समाप्त होने पर उन्होंने भोजन लिया। तब से ‘प्रसाद’ को ‘महाप्रसाद’ कहा जाता था।

 

कैसे महाप्रसाद बनाया जाता है?



भगवान जगन्नाथ का भोजन दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में बनाया जाता है। इसे बनाने में लगभग 500 रसोइए और उनके 300 कर्मचारी मिलकर काम करते हैं। माना जाता है कि मां लक्ष्मी इस भोग को बनाती हैं। रोज भगवान को 56 भोग बनाए जाते हैं। हिंदू धर्म में बताई गई प्रक्रिया के अनुसार ही इन्हें बनाया जाता है। भोग के किसी भी व्यंजन में कोई परिवर्तन नहीं होता। पूरा भोजन शाकाहारी है। इसमें प्याज और लहसुन भी नहीं हैं।

 

पद्धति

 

मिट्टी के बर्तनों में सारा भोग होता है। रसोई में दो कुएं हैं। दो नदियों को गंगा और यमुना कहते हैं। इन्हीं से निकले पानी से सारा भोग बनाया जाता है। भोग पकाने के लिए सात मिट्टी के बर्तन एक साथ रखें। सारा खाना लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है। इसमें पहले सबसे ऊपर के बर्तनों का खाना बनाया जाता है, फिर नीचे के बर्तनों का। 

 

भक्तों के लिए भव्य भोजन



ये महाप्रसाद हर दिन लगभग २० हजार लोगों के लिए बनाया जाता है। ये महाप्रसाद त्योहारों पर पांच सौ हजार लोगों के लिए बनाए जाते हैं। महाप्रसाद भी ऑनलाइन बुक कर सकते हैं। भक्तों के भोग के बाद ये महाप्रसाद आनंद बाजार में मिलता है। विश्वनाथ मंदिर आनंद बाजार से पांच सीढ़ियां चढ़ने पर है।

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