गुप्त नवरात्रि
गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्रि का क्या अर्थ है?

 

माना जाता है कि आषाढ़ और माघ महीने में होने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, क्योंकि इसमें गुप्त विद्याओं की खोज की जाती है। गुप्त नवरात्रि का नाम गुप्त नवरात्रि से आता है क्योंकि इसमें गुप्त साधनाओं का महत्व होता है। इसमें अघोरी तांत्रिक गुप्त महाविद्याओं को सिद्ध करने और मोक्ष की कामना करने के लिए विशेष पूजा की जाती है।

गुप्त नवरात्रि

दस देवियों को पूजा जाती है



चैत्र और शारदीय नवरात्रि में नौ शक्तियों की पूजा की जाती है, जबकि गुप्त नवरात्रि में दस देवियों की पूजा की जाती है। इन दस देवियों का नाम है माता कालिके, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, माता भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, माता त्रिपुर भैरवी, माँ धूमावती, माता बगलामुखी, माता मातंगी और माता कमला देवी।

 

गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्रि से प्रत्यक्ष नवरात्रि में यह अंतर है

 

माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि तंत्र साधना और वशीकरण में विश्वास रखने वाले लोग नहीं मनाते हैं। गृहस्थों को इसलिए गुप्त नवरात्री में भी नवदुर्गा की पूजा करनी चाहिए। गुप्त नवरात्रि में सात्विक साधना, नृत्य और उत्सव नहीं होते, लेकिन प्रत्यक्ष नवरात्रि में ऐसा होता है।

 

जबकि प्रत्यक्ष नवरात्रि को सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनाया जाता है, गुप्त नवरात्रि को मोक्ष की इच्छा और इच्छाओं की पूर्ति के लिए पूजा जाती है। यह भी मानते हैं कि वैष्णवों की प्रत्यक्ष नवरात्रि हैं, जबकि शेव और शाक्तों की गुप्त नवरात्रि हैं। प्रत्यक्ष नवरात्रि की देवी मानी जाती है मां पार्वती।गुप्त नवरात्रि की देवी मां काली जाती है

गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्रि की पूजा की प्रक्रिया

 

गुप्त नवरात्रों में, जौ को माता आद्य शक्ति के समक्ष शुभ समय पर रखा जाता है और इसे उगने के लिये रखा जाता है। इसमें पानी से भरा एक और कलश लगाया जाता है। कच्चा नारियल कलश पर रखा जाता है। कलश को स्थापित करने के बाद मां भगवती की अंखंड ज्योति जलाया जाता है। श्री गणेश भगवान की पूजा की जाती है। श्री वरूण देव और श्री विष्णु देव इसके बाद पूजे जाते हैं। शिव, सूर्य, चन्द्रा आदि नवग्रह भी पूजे जाते हैं। ऊपर बताए गए देवताओं के बाद मां भगवती की पूजा की जाती है। नवरात्रों में हर दिन उपवास करके दुर्गा सप्तशती और देवी की पूजा की जाती है।

गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्र और उपाय

 

गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं का पूजन बहुत महत्वपूर्ण है। Bhagavad Gita में महाकाली की दस महाविद्याएँ बताई गई हैं, जो उग्र और सौम्य दो रुपों में प्रकट होती हैं। यह महाविद्याएँ भगवान शिव से सिद्धियाँ लाने वाली हैं। देवी दुर्गा के दस रूप कहे जाते हैं। प्रत्येक महाविद्या अद्वितीय रुप लिए हुए जीवों के सभी संकटों को दूर करती है। इन दस महाविद्याओं को तंत्र साधना में बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी माना जाता है।

 

देवी काली दस महाविद्याओं में से एक है। तंत्र साधना में तांत्रिक देवताओं को काली के रूप में पूजा जाता है।देवी तारा: दस महाविद्याओं में से माँ तारा की उपासना विधि साधकों के लिए सबसे प्रभावी होती है।

 

देवी तारा सबकी मुक्ति का विधान रचती है, क्योंकि माँ तारा परारूपा और महासुन्दरी कला-स्वरूपा हैं।

 

माँ ललिता: माँ ललिता की पूजा शुभ करती है। दक्षिणमार्गी शाक्तों का मत है कि देवी ललिता को चण्डी का स्थान मिला है।

 

माँ भुवनेश्वरी: सृष्टि के ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। देवी भगवती सर्वोच्च शक्ति का प्रतीक हैं। माना जाता है कि इनका मंत्र सभी देवी देवताओं की पूजा में अद्भुत शक्ति देता है।

 

त्रिपुर भैरवी—एक देवता माँ त्रिपुर भैरवी दोनों रजोगुण और तमोगुणों से परिपूर्ण हैं।

 

माता छिन्नमस्तिका—माँ छिन्नमस्तिका को मां चिंतपूर्णी भी कहते हैं। माँ सभी दुःख दूर करने वाली है।

 

माँ फूल: मां धूमावती का दर्शन पूजन अभीष्ट फल देता है। माँ धूमावती जी का भयानक चेहरा सिर्फ शत्रुओं को मारने के लिए बनाया गया है।

 

माँ बगलामुखी: स्तंभन की अधिष्ठात्री हैं। इनकी पूजा करने से शत्रुओं का वध होता है और भक्तों का जीवन सभी बाधाओं से बचता है।

 

देवी मातंगी—यह वाणी और संगीत की देवी है। इनमें पूरे ब्रह्मांड की शक्ति है।भक्तों को भगवती मातंगी अभय देती हैं।

 

माता कमला: मां कमला सौभाग्य और संपदा का प्रतीक हैं। धन संपत्ति की देवी है, और भौतिक सुख चाहने वालों के लिए उनकी पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *